निर्जला एकादशी की तारीख को लेकर पंचांग भेद:17 और 18 जून को निर्जला एकादशी, इस व्रत से मिलता है पूरे साल की एकादशियों के बराबर पुण्य
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी (निर्जला) की तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं। कुछ पंचांगों में 17 जून और कुछ में 18 जून को निर्जला एकादशी बताई गई है। ये व्रत सालभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल देने वाला माना गया है, इसलिए इसे साल की सबसे बड़ी एकादशी भी कहते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, निर्जला एकादशी की तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं, ऐसे में हम अपने-अपने क्षेत्र के पंचांग और विद्वानों द्वारा बताई गई तारीख पर ये व्रत कर सकते हैं। जानिए ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से जुड़ी खास बातें और संक्षिप्त व्रत कथा…
इस एकादशी को पांडव और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत काल में पांडव पुत्र भीम ने भी ये व्रत किया था। इस वजह से इस एकादशी को भीमसेनी नाम मिला है। ये व्रत करने के साथ ही भक्तों को मौसमी फल जैसे आम, मिठाई, पंखा, कपड़े, जूते-चप्पल, धन, अनाज का दान जरूर करना चाहिए।
इस दिन बाल गोपाल, भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक करना चाहिए। सोमवार को ये तिथि होने से इस दिन शिव जी का भी रुद्राभिषेक जरूर करें। साथ ही शिवलिंग पर चंदन का लेप भी करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत निर्जल रहकर किया जाता है। इस दिन अन्न और पानी का भी सेवन नहीं किया जाता है। तभी इस व्रत का पूरा पुण्य मिलता है। गर्मी के दिनों में दिनभर भूखे-प्यासे रहना काफी मुश्किल है, इसी वजह से ये व्रत तपस्या की तरह माना जाता है। गर्भवती महिला, बीमार, बच्चे और बूढ़े दिनभर भूखे-प्यासे नहीं रह सकते हैं, इसलिए इन्हें इस व्रत खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जिन लोगों के लिए भूखे-प्यासे रहना मुश्किल है, वे व्रत में फलों का, दूध का सेवन कर सकते हैं।
इस दिन विष्णु जी के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए। सुबह-शाम विष्णु पूजा करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठें, पूजा-पाठ करें और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। इसके बाद ही खुद खाना खाएं। इस तरह ये व्रत पूरा होता है।
ये है निर्जला एकादशी की संक्षिप्त विधि
प्रचलित कथा के अनुसार महाभारत काल में महर्षि वेद व्यास एक दिन पांडवों को एकादशी व्रत का महत्व बता रहे थे। तब भीम ने व्यास जी से कहा था कि मैं तो भूखे रह ही नहीं पाता हूं। ऐसे में मुझे एकादशी व्रत का फल कैसे मिल सकता है?
व्यास जी ने भीम को बताया कि निर्जला एकादशी के व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य कमाया जा सकता है। इसके बाद भीम ने भी ये व्रत किया था। तभी से इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।