छत्तीसगढ़त्योहार और परंपराएँ

हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्यौहार

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ राज्य का एक प्रमुख और पारंपरिक त्योहार है, जिसे हर वर्ष श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है। ‘हरेली’ शब्द ‘हरी’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ‘हरियाली’ या ‘हरापन’। इस त्योहार का नाम ही इस बात का प्रतीक है कि यह प्रकृति और कृषि से अत्यधिक जुड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है, और यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर में कृषि और पर्यावरण का महत्वपूर्ण स्थान है।

हरेली तिहार का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना होता है। इस दिन किसान अपने खेत और कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं और अच्छी फसल की कामना करते हैं। यह त्योहार ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है, जहां खेती-बाड़ी जीवन का अभिन्न अंग है। इसमें न केवल कृषि उपकरणों की पूजा होती है, बल्कि बैलों और अन्य घरेलू पशुओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

इस त्योहार के दौरान लोग अपने घरों को हरे पत्तों और वृक्षों से सजाते हैं। घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है। बच्चे और युवा विशेष प्रकार के खेलों में भाग लेते हैं, जैसे कि गेंड़ी चढ़ना, जो हरेली तिहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

छत्तीसगढ़ के हर गाँव और शहर में हरेली तिहार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन सभी का मूल उद्देश्य प्रकृति और कृषि के प्रति श्रद्धा और आभार प्रकट करना ही होता है। यह त्योहार सामाजिक समरसता और सामूहिकता का प्रतीक है, और इसे मनाने के पीछे का उद्देश्य लोगों को एकजुट करना और उन्हें प्रकृति के प्रति जागरूक बनाना है।

हरेली तिहार की प्रमुख गतिविधियाँ और परंपराएँ

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसे विभिन्न गतिविधियों और परंपराओं के माध्यम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य कृषि और प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करना है, जिसके लिए विभिन्न प्रकार की रस्में और खेल आयोजित किए जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है गोबर से बने उपकरणों का उपयोग। गाँव के लोग गोबर से छोटे-छोटे उपकरण बनाते हैं, जिन्हें खेतों में रखकर बुरी आत्माओं से बचाव किया जाता है।

हरेली तिहार के दौरान लोकगीतों और नृत्यों का आयोजन भी होता है, जो इस त्यौहार को और भी रंगीन और मनोरंजक बना देता है। ग्रामीण महिलाएँ और पुरुष पारंपरिक वेश-भूषा में सजकर नृत्य करते हैं और लोकगीत गाते हैं। इन गीतों और नृत्यों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं और कृषि के महत्व को उजागर किया जाता है।

इसके अलावा, इस त्यौहार में कृषि उपकरणों की पूजा भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है। किसान अपने कृषि उपकरणों को साफ करके उनकी पूजा करते हैं और उन्हें नए सिरे से तैयार करते हैं, ताकि आने वाले फसल सत्र में वे अच्छी तरह से काम कर सकें। यह परंपरा कृषि उपकरणों की महत्ता को दर्शाती है और उन्हें सम्मान देने का एक तरीका है।

खेतों की साफ-सफाई भी इस त्यौहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसान अपने खेतों को साफ करते हैं और नए सिरे से बीज बोने की तैयारी करते हैं। इस गतिविधि का उद्देश्य केवल खेतों को साफ करना ही नहीं, बल्कि आने वाले फसल सत्र के लिए तैयारी करना भी है।

इन सभी गतिविधियों और परंपराओं के माध्यम से हरेली तिहार न केवल कृषि और प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करता है, बल्कि समुदाय के लोगों को एकजुट होने का अवसर भी प्रदान करता है।

हरेली तिहार का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो कृषि जीवन और ग्रामीण संस्कृति से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। इस त्योहार का आयोजन मुख्य रूप से किसानों द्वारा किया जाता है, जो अपनी फसलों की अच्छी पैदावार के लिए भगवान शिव और अन्य देवताओं से आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। हरेली तिहार के दौरान, ग्रामीण जीवन की सजीवता और उत्साह देखने को मिलता है, जिसमें किसान अपने खेतों की पूजा करते हैं और अपने कृषि उपकरणों का सम्मान करते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो हरेली तिहार का अत्यधिक महत्त्व है। इस त्योहार में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है, जिन्हें कृषि और प्रकृति के देवता माना जाता है। भगवान शिव के साथ-साथ देवी पार्वती और अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। इन पूजाओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ के लोग अपने देवताओं का धन्यवाद करते हैं और उनसे आने वाले समय में अच्छी फसल और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

इसके अलावा, हरेली तिहार के माध्यम से छत्तीसगढ़ के लोग अपने पूर्वजों और प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह त्योहार एक प्रकार से प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को और मजबूत बनाने का प्रयास करता है। कृषि उपकरणों की पूजा और खेतों में विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि फसलें अच्छी हों और प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति मिले।

हरेली तिहार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। इस अवसर पर गांव के लोग एकत्रित होकर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें नृत्य, गीत और पारंपरिक खेल शामिल होते हैं। यह त्योहार छत्तीसगढ़ की जीवंत संस्कृति और समृद्ध परंपराओं का प्रतीक है, जो समग्रता का संदेश देता है।

हरेली तिहार का समकालीन महत्व और संरक्षण

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख त्यौहार है जो समय के साथ अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने में सफल रहा है। आधुनिक समाज में इस त्योहार का महत्व कई कारणों से बढ़ा है, जिनमें प्रमुख हैं पर्यावरण संरक्षण, कृषि के प्रति सम्मान और सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा। यह त्योहार न केवल खेती-बाड़ी के पुराने तरीकों का सम्मान करता है, बल्कि स्थायित्व और पर्यावरण-जागरूकता के संदेश को भी प्रचारित करता है।

आज के तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन के बावजूद, हरेली तिहार ने अपनी जड़ें मजबूत रखी हैं। गांवों और शहरों में इस त्योहार को मनाने की परंपरा ने इसे एक सामाजिक एकजुटता का प्रतीक बना दिया है। यह त्योहार समुदायों को साथ लेकर आता है, जहाँ लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर खेती के उपकरणों की पूजा करते हैं और अपनी कृषि भूमि के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।

हरेली तिहार के संरक्षण हेतु विभिन्न संगठनों और सरकारी प्रयासों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्थानीय प्रशासन और सांस्कृतिक संगठनों ने कई पहलें शुरू की हैं, जिनमें इस त्योहार को स्कूलों और कॉलेजों में शामिल करना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन, और लोककला के माध्यम से इस त्योहार का प्रचार-प्रसार शामिल है। इन प्रयासों का उद्देश्य नई पीढ़ी को इस त्योहार की महत्ता से अवगत कराना और इसे जीवित रखना है।

इसके अतिरिक्त, कृषि विश्वविद्यालय और शोध संस्थान भी इस त्योहार के पारंपरिक ज्ञान और तकनीकों को संरक्षित करने के लिए कार्य कर रहे हैं। इनमें जैविक खेती, पारंपरिक कृषि उपकरण, और पर्यावरणीय स्थायित्व से जुड़े शोध कार्य शामिल हैं। इन प्रयासों से न केवल हरेली तिहार का संरक्षण होता है, बल्कि इसके माध्यम से समाज के कृषि और पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण में भी बदलाव आता है।

Muskan Sharma

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