2 लोकसभा चुनाव में आदिवासियों की पसंद NOTA:छत्तीसगढ़ की 5 सीटों पर प्रत्याशियों से ज्यादा वोट मिले; बीजेपी-कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर पर
छत्तीसगढ़ में हुए पिछले दो लोकसभा चुनावों में 5-5 सीटों में नोटा तीसरे नंबर पर रहा है। आदिवासी बहुल बस्तर और कांकेर ऐसी लोकसभा सीटें है, जहां दोनों ही चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट NOTA को मिले हैं। इसी तरह राजनांदगाव, सरगुजा, महासमुंद और रायगढ़ लोकसभा में भी तीसरा रैंक NOTA का रहा है।
27 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने नोटा (NONE OF THE ABOVE) यानी ऊपर के प्रत्याशियों में से कोई नहीं का विकल्प रखने का निर्देश दिया था। इसके बाद लोकसभा के दो चुनाव हो चुके हैं, जिसमें छत्तीसगढ़ की आदिवासी बहुल सीट में नोटा का बटन सबसे ज्यादा लोगों ने दबाया है।
ये बटन ईवीएम में सबसे आखिर में दिया जाता है लेकिन कई निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद बीजेपी और कांग्रेस के बाद लोगों ने नोटा को ही पसंद किया। अगर मतदान में नोटा को उम्मीदवारों से भी ज्यादा वोट मिले तब क्या होगा और विजेता किसे घोषित किया जाएगा। इस रिपोर्ट से समझते हैं, लेकिन उससे पहले अहम आंकड़ों पर नजर
2014 लोकसभा में सीटवार नोटा का रैंक
लोकसभा सीट | नोटा को मिले वोट | नोटा का रैंक |
बस्तर | 38,772 | 3 |
कांकेर | 31,917 | 3 |
राजनांदगांव | 32,384 | 3 |
सरगुजा | 31,104 | 3 |
रायगढ़ | 28,480 | 3 |
जांजगीर-चांपा | 18,438 | 4 |
दुर्ग | 11,907 | 6 |
महासमुंद | 9955 | 7 |
कोरबा | 8570 | 8 |
बिलासपुर | 7566 | 8 |
रायपुर | 5796 | 8 |
2019 लोकसभा में सीटवार नोटा का रैंक
लोकसभा सीट | नोटा को मिले वोट | नोटा का रैंक |
बस्तर | 41,667 | 3 |
कांकेर | 26,713 | 3 |
महासमुंद | 21,241 | 3 |
राजनांदगांव | 19,436 | 3 |
सरगुजा | 29,265 | 3 |
कोरबा | 19,305 | 4 |
रायगढ़ | 15,729 | 4 |
जांजगीर-चांपा | 9,981 | 4 |
बिलासपुर | 4,365 | 8 |
रायपुर | 4,492 | 8 |
दुर्ग | 4,271 | 8 |
NOTA को क्यों किया जाता है वोट
चुनावों में राजनीतिक दलों के साथ निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में होते हैं। ऐसे में अगर वोटर किसी भी कैंडिडेट को पसंद नहीं करता तब इनमें से कोई भी नहीं का विकल्प NOTA के रूप में चुना जा सकता है। मतगणना के दौरान प्रत्याशियों को दिए गए वोटों के साथ ही नोटा में आए वोटों की भी गिनती की जाती है।
राजनीतिक दलों को यह संदेश देना था कि धन या बाहुबल के आधार पर चुनाव को प्रभावित करने वाले उम्मीदवार अगर उतारे जाते हैं तो जनता उन्हें नोटा के रूप में रिजेक्ट कर सकती है। उनको वोट देने के बजाए मतदाता नोटा को विकल्प के रूप में चुन सकते हैं।
नक्सलियों का प्रभाव नोटा को ज्यादा वोट मिलने का कारण
प्रदेश के मैदानी इलाकों से ज्यादा आदिवासी बहुल सीटों में मतदाताओं ने सबसे ज्यादा नोटा को वोट दिया है। बस्तर, कांकेर, सरगुजा और राजनांदगांव में नोटा बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशियों के बाद तीसरे नंबर पर रहा है। पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील त्रिवेदी ने बताया कि 2013 में पहली बार नोटा का विकल्प आया तब 3% से ज्यादा वोट नोटा को मिले थे।
उस समय नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नक्सलियों ने फरमान जारी किया था कि किसी को वोट ना करें। ऐसे में नक्सल प्रभावित क्षेत्र में मुख्य रूप से दक्षिण छत्तीसगढ़ में नोटा का ज्यादा प्रयोग हुआ था। ये माना गया कि नक्सलियों का प्रभाव ही नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलने का कारण है लेकिन जैसे-जैसे आगे चुनाव होते गए नोटा का प्रतिशत घटता गया।
हालांकि कुछ आदिवासी बहुल क्षेत्र ऐसे भी हैं। जो नक्सल प्रभावित नहीं है लेकिन फिर भी वहां नोटा को वोट पड़ रहे हैं जो मतदाताओं की अपनी धारणा है।
NOTA को ज्यादा वोट मिले तब?
पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील त्रिवेदी का कहना है कि नोटा चुनाव परिणामों को प्रभावित नहीं करते। उदाहरण के तौर पर अगर एक सीट पर कुल 100 वोट पड़ते हैं और उनमें 99 भी अगर नोटा को मिलता है और 1 वोट ही किसी प्रत्याशी को मिलता है तो वह प्रत्याशी ही विजेता माना जाएगा।
इसके अलावा बाकी के वोट अवैध घोषित किए जाएंगे। इसी तरह अगर नोटा और सबसे ज्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी दोनों में बराबर मत होंगे तब भी प्रत्याशी को ही विजेता घोषित किया जाएगा।
NOTA के विकल्प को समाप्त करने की उठ चुकी है मांग
साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने EVM मशीनों से NOTA का विकल्प समाप्त करने की बात कह चुके हैं। उन्होंने कहा था कि कई बार ऐसा देखा गया है जब जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को मिले है और ऐसे में चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए।